इस प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम में मल्टिपल प्रोसेसर होते हैं, जो अपने बस, क्लॉक, मेमोरी और इनपुट/ आउटपुट डिवाइसेस का उपयोग करते हैं। I/O प्रोसेसर के उपयोग से इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपुट ऑपरेशन का एक साथ एक्जिक्यूशन संभव कर कम्प्यूटर सिस्टम की कार्यक्षमता को बढ़ाया जा सकता है। प्रोग्राम के विभिन्न भागों पर CPU कुछ ऑपरेशन कर सकता है, जबकि प्रोग्राम्स के दूसरे भाग में I/O प्रोसेसर के द्वारा I/O ऑपरेशन किये जा सकते हैं ।
I/O प्रोसेसर के उपयोग का उद्देश्य कम्प्यूटर सिस्टम की क्षमता को बढ़ाना है। इस विचार ने एक से अधिक CPU का उपयोग करने वाले सिस्टम बनाने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाया । इस तरह के सिस्टम को मल्टिप्रोसेसिंग सिस्टम कहा गया । मल्टिप्रोसेसिंग शब्द का उपयोग दो या अधिक स्वतंत्र CPU से जुड़े कम्प्यूटरों अथवा आपस में जुड़े हुए कम्प्यूटरों के समूह के लिये किया गया, जिनमें एक ही समय में एक साथ कई प्रोग्राम चलाने की क्षमता होती है। इस तरह के सिस्टम में एक ही समय में अलग-अलग CPU से भिन्न और स्वतंत्र प्रोग्राम चलाए जा सकते हैं अथवा CPU एक ही प्रोग्राम के भिन्न-भिन्न निर्देशों पर कार्य कर सकते हैं।
कई तरह के मल्टिप्रोसेसिंग सिस्टम संभव हैं। कुछ सिस्टम में, मुख्य प्रोसेसिंग के लिए कई छोटे CPU को आपस में जोड़ा जाता है। यदि छोटे CPU में से एक काम करना बंद कर दे, तो दूसरा अपने आप उसका काम करने लगता है। कुछ अन्य सिस्टम में, CPUs कम्प्यूटर नेटवर्क के रूप में जुड़े होते हैं । डिस्ट्रीब्यूटेड डाटा प्रोसेसिंग इसका एक उदाहरण है। इन नेटवर्क में, छोटे CPUs का उपयोग दुरस्थ टर्मिनल और दूसरी इनपुट डिवाइस से सिस्टम में प्रवेश करने वाले सभी जॉब को शेड्यूल और नियंत्रण के लिये किया जाता है। इन छोटे CPUs को फ्रंट एण्ड प्रोसेसर्स कहा जाता है । CPUs जिन्हें होस्ट कम्प्यूटर या बेक- 5-एण्ड प्रोसेसर कहा जाता है, का उपयोग मुख्य प्रोसेसिंग के लिये किया जाता है, न कि डाटा संचार के लिए। कुछ मल्टिप्रोसेसिंग सिस्टम में प्रत्येक CPU कुछ विशेष प्रकार के कार्य करता है और यदि एक CPU काम करना बंद कर देता है, तब त्रुटि के डिबग होने तक दूसरा कम्प्यूटर कार्य पूरा करता है ।
मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के लाभ:
मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के लाभ
मल्टिप्रोसेसिंग के कई लाभ है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं :
1. प्रोग्राम के विभिन्न भागों को परेलल प्रोसेसिंग को अनुमति देकर मल्टिप्रोसेसिंग, कम्प्यूटर सिस्टम की कार्यक्षमता को बढ़ाती है। इस बेहतर कार्यक्षमता को सिस्टम के तुलनात्मक रूप से बड़े हुए पुपुट और कम टर्न अराउण्ड टाईम के रूप में देखा जा सकता है।
2. CPU के अलावा यह कम्प्यूटर सिस्टम की दूसरी डिवाइसेस से अधिक कार्य लेने की सुविधा भी देता है। अर्थात् पैसों की बचत करता है।
3. यह एक बिल्ड-ईन-बेकअप की सुविधा उपलब्ध करवाता है। यदि एक CPU काम करना बंद कर दें, तो दूसरे CPU अपने आप तब तक उसका भी काम करेंगे, जब तक कि सुधार कार्य हो रहे हैं। इस तरह, इस सिस्टम का पूरी तरह ब्रेक-डाउन बहुत दुर्लभ होता है अर्थात् सिस्टम की विश्वसनीयता बढ़ती है ।
मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम की सीमाएँ:
फिर भी मल्टिप्रोसेसिंग एक सरल काम नहीं है। इसकेनिम्नलिखित कारण हैं –
1. कई सी.पी.यू. की इनपुट, आउटपुट और प्रोसेसिंग प्रक्रियाओं को जोड़ने, उनका बेलेंस और शेड्यूल करने के लिए एक विशेष और अच्छी कार्यक्षमता वाले ऑपरेटिंग सिस्टम की आवश्यकता होती है । इस तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम के निर्माण में बहुत समय लगता है और कम्प्यूटर क्षेत्र के विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है ।
2. कई युज़र प्रोग्राम और विशेष ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए बड़ी मात्रा में मुख्य मेमोरी की आवश्यकता होती है
3. यह सिस्टम बहुत महंगा होता है। प्रारंभ में अधिक कीमत चुकाने के बाद भी इन सिस्टम्स् का प्रबंधन भी बहुत महंगा होता है ।
टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम:
टाइम शेयरिंग एक टर्म है, इसमें एक ही समय में कई कम्प्यूटर प्रोग्राम्स् को कम्प्यूटर रिसोर्सेस का वितरण टाइम स्लाइस (time-slice) के आधार पर किया जाता है। टाइम शेयरिंग सिस्टम का सिद्धांत बड़ी संख्या में युज़रों को उनकी समस्याओं को हल करने के लिए कम्प्यूटर से डायरेक्ट एक्सेस प्रदान करना है। यह कार्य प्रत्येक युज़र को अलग टर्मिनल उपलब्ध करवाकर पूरा किया जाता है। ये सभी 1 टर्मिनल मुख्य कम्प्यूटर सिस्टम से जुड़े होते हैं। इस प्रकार एक टाइमशेयरिंग सिस्टम में, एक ही समय में एक ही, कम्प्यूटर से जुड़े सैकड़ों टर्मिनल होते हैं। जिस प्रकार मल्टिप्रोग्रामिंग में प्रोग्राम उनके महत्व के आधार पर एक्जिक्यूट किये जाते हैं, इसके ठीक विपरित टाइमशेयरिंग में CPU समय को शेड्यूल्ड के आधार पर सभी युज़र के लिये उपलब्ध करवाया जाता है ।
टाइमशेयरिंग सिस्टम की मूल धारणा सभी युजर प्रोग्राम्स को बारी-बारी से CPU टाईम का उपयोग करने की अनुमति देना है। पहले प्रोग्राम से प्रारंभ होकर अंतिम प्रोग्राम तक जाने वाले प्रत्येक युजर प्रोग्राम को बारी-बारी से CPU टाईम का बहुत छोटा भाग प्रदान किया जाता है। CPU समय के जिस छोटे-से-छोटे भाग में युजर द्वारा दिये गए कमांड के अनुसार प्रोग्राम को क्रियान्वित करता है, समय के उस भाग को टाइम स्लाइस, टाइम स्लॉट या क्वांटम कहा जाता है और यह समय 10 से 50 मिलिसेकण्ड का होता है।
टाइमशेयरिंग से जुड़ी सिस्टम की प्रोसेसिंग स्पीड और मल्टिप्रोग्रामिंग के उपयोग से CPU, एक युज़र स्टेशन से दूसरे युज़र स्टेशन पर जाता है और प्रत्येक जॉब के एक भाग को पूरा करने के लिए टाइम स्लाइस (समय का एक भाग) का वितरण तब तक करता है जब तक कि जॉब पूरा न हो जाए। स्पीड इतनी तेज होती है कि युज़र को यह भ्रम होने लगता है कि केवल वह ही सिस्टम का उपयोग कर रहा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे कि एक चलती फिल्म को देखना। स्वीचिंग इतनी तेज होती है कि लगता है कि उसी टर्मिनल पर प्रोसेसिंग हो रही है ।
अधिकांश टाइम शेयरिंग सिस्टम CPU की राउण्ड रोबिन (टाइम-स्लाइस) शेड्यूलिंग का उपयोग करते हैं। टाइम शेयरिंग सिस्टम में युजर के डाटा की सुरक्षा और उसको अलग रखने के लिए मेमोरी प्रबंधन किया जाता है। टाइम शेयरिंग सिस्टम के इनपुट / आउटपुट प्रबंधन संबंधी घटकों द्वारा एक से अधिक यूजर्स (टर्मिनल्स) व्यवस्थित होने चाहिये।
टाइमशेयरिंग शब्द का प्रयोग एक ऐसे प्रोसेसिंग, सिस्टम की व्याख्या करने के लिए किया गया है, जिसमें कई स्वतंत्र, कम गति वाले, ऑनलाइन, समानांतर उपयोग के योग्य स्टेशन हो । प्रत्येक स्टेशन का सीधा संबंध CPU से होता है ।
टाईम शेयरिंग के लाभ:
1. यह प्रोग्राम के चलने के समय में भी युज़र को किसी भी प्रकार का परिवर्तन करने की अनुमति देता है।
2. CPU की पूरी कार्यक्षमता का उपयोग होता है ।
3. छोटे युज़र के लिये कम्प्यूटींग की सुविधा है।
4. बहुत कम टर्नअराउण्ड या रिस्पांस टाइम |
5. पेपर के आउटपुट को कम करना । ऑनलाइन फाइलें उपलब्ध होती हैं ।
टाईम शेयरिंग से हानियाँ:
1. यह मल्टिप्रोग्रामिंग की तुलना में अधिक जटिल है ।
2. इसमें सुरक्षा और बचाव जरूरी है ।
3. एक्जिक्यूशन के लिए इसमें सी.पी.यू. शेड्यूलिंग अनिवार्य है ।
4. इसमें डिस्क प्रबंधन आवश्यक है ।
5. इसमें आभासीय मेमोरी कॉनसेप्ट के उपयोग की आवश्यकता होती है ।
6. विश्वसनियता आवश्यक होती है ।